Sampuran Manusmriti – सम्पूर्ण मनुस्मृति
स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है । मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेक स्मृतियाँ प्रकाश में आयीं किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे अपना प्रभाव न जमा सकीं , जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत् विद्यमान है । मनुस्मृति में एक ओर मानव समाज के लिए श्रेष्ठतम सांसारिक कर्तव्यों का विधान है , तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण भी है , इस प्रकार मनुस्मृति भौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों उपदेशों का मिला – जुला अनूठा शास्त्र है ।
इस प्रकार अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति मानवमात्र के लिए उपयोगी एवं पठनीय है । किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज ऐसे उत्तम और प्रसिद्ध ग्रन्थ का पठन – पाठन लुप्त प्रायः होने लगा है । इसके प्रति लोगों में अश्रद्धा की भावना घर करती जा रही है । इसका कारण है- ‘ मनुस्मृति में प्रक्षेपों की भरमार होना । प्रक्षेपों के कारण मनुस्मृति का उज्ज्वल रूप गन्दा एवं विकृत हो गया है । परस्परविरुद्ध प्रसंगविरोध एवं पक्षपातपूर्ण बातों से मनुस्मृति का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा विलुप्त हो गये हैं ।
एक महान तत्त्वद्रष्टा ऋषि के अनुपम शास्त्र को स्वार्थी प्रक्षेपकर्ताओं ने विविध प्रक्षेपों से दूषित करके न केवल इस शास्त्र के साथ अपितु महर्षि मनु के साथ भी अन्याय किया है । प्रस्तुत संस्कारण का भाष्य पर्याप्त अनुसंधान के बाद किया गया है तथा प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को निकाल दिया गया है ।
इसकी विशेषताएँ हैं- प्रक्षिप्त श्लोकों के अनुसंधान के मानदण्डों का निर्धारण और उनपर समीक्षा , विभिन्न शास्त्रों के प्रमाणों से पुष्ट अनुशीलन समीक्षा , मनु के वचनों से मनु के भावों की व्याख्या , मनु की मान्यता के अनुकूल और प्रसंगसम्मत अर्थ , भूमिका – भाग में मनुस्मृति का नया मूल्याकंन , महर्षि दयानन्द के अर्थ और भावार्थ , प्रथम बार हिन्दी पदार्थ टीका प्रस्तुत , सभी अनुक्रमणिकाओं एवं सूचियों से युक्त , मनुस्मृति के प्रकरणों का उल्लेख । – – सम्पूर्ण श्लोकों के इस संस्करण में प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को उनके आरम्भ में ‘ एस्टरिस्क ‘ ( तारांकन ) सितारे के चिन्ह के साथ प्रकाशित किया है । बिना चिन्ह वाले श्लोक मौलिक हैं ।