
अथातो धर्म जिज्ञासा- Athato dharm jigyasa By Ved Parkash
” सम्पूर्ण मानव मात्र के लिए उपयुक्त आदर्श सम्बन्धी नियमन को ही ” धर्म ” कहा जा सकता है और यह ईश्वर द्वारा निर्धारित है । ” – ” धर्म नित्य , शाश्वत एवं सार्वकालिक होता है क्योंकि ये जीव के लिए प्रयोग्य है , जो स्वयं नित्य व अनादि है और इनका नियमनकर्ता ईश्वर भी तो नित्य एवं अनादि ही है । ” – “ धर्म या मानव धर्म , सृष्टिकर्त्ता द्वारा मानव मात्र के लिए विहित आचार संहिता ( Prescribed Code of Conduct ) सृष्टिकर्ता द्वारा मनुष्य को कर्म स्वातन्त्र्य जैसा विशेषाधिकार देने के बाद , उसे कृत्य – अकृत्य कर्मों के निश्चय हेतु मार्ग दर्शन के लिए धर्म की व्यवस्था की गयी है । मनुष्य द्वारा किये कर्मों के मूल्यांकन हेतु मापदंड भी यही है ” …। “ मानव मात्र के लिए सृष्टि के रचनाकार द्वारा विहित धर्म ( Prescribed ) है क्या ? अहिंसा , सत्य , धैर्य , क्षमा , संयम , अस्तेय , पवित्रता , इन्द्रिय निग्रह , बुद्धि , विद्या आदि मनुष्य मात्र के लिए निर्धारित आचरण सम्बन्धी सार्वभौमिक , सर्वकालिक नियम हैं , जिन्हें धर्म की प्रतिष्ठा है अर्थात् मात्र इन्हें ही धर्म के नाम से सम्बोधित किया जा सकता है । इनके अतिरिक्त जो कुछ भी धर्म के नाम से प्रसिद्ध या प्रचलित हैं , वह सब अनर्थक हैं “