Agnihotra Sarvaswa - अग्निहोत्र सर्वस्व

Agnihotra Sarvaswa - अग्निहोत्र सर्वस्व

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वैदिक संस्कृति को यदि एक शब्द में उपसंहृत करना हो , तो वह शब्द है- यज्ञ । पौर्णमास से लेकर अश्वमेधपर्यन्त यज्ञों तक का वितान इसका सूचक है । फिर इन यज्ञों के वितान को भी उपसंहृत करके पञ्चमहायज्ञों में समेट दिया गया है । भगवान् मनु का आदेश है कि ' पञ्चैताँस्तु महायज्ञान् यथाशक्ति न . हापयेत् । ' - मुझे यदि भगवान् मनु द्वारा आदिष्ट इस श्लोकार्ध के परिवर्तन की अनुमति दे दी जाये , तो मैं लिखूँगा- ' षडैताँस्तु महायज्ञान् यथाशक्ति न हापयेत्'- यथाशक्ति कोई भी गृहस्थ इन छः महायज्ञों के करने में कभी प्रमाद न करे । यहाँ ब्रह्मयज्ञ में स्वाध्याय के साथ सन्ध्या भी गृहीत है , इसलिए हमने पञ्च के स्थान पर षट् का प्रयोग किया है । इन छ : महायज्ञों को पूर्व और उत्तर दो अर्धो में विभक्त किया जा सकता है । यदि पूर्वार्ध में तीन महायज्ञ हैं , तो उत्तरार्ध में भी तीन ही हैं । पूर्वार्ध की समाप्ति अग्निहोत्र की अग्नि में आहुति देने से होती है , तो उत्तरार्ध की समाप्ति जठराग्नि में आहुति देकर यथा अग्निहोत्र की अग्नि में आहुति देने से पूर्व सन्ध्या और स्वाध्याय करना अनिवार्य है , तद्वत् जठराग्नि में आहुति देने से पूर्व बलिवैश्वदेव - यज्ञ , अतिथियज्ञ और पितृ यज्ञ करना अनिवार्य है । इस प्रकार छः महायज्ञ पूर्व और उत्तर , दो अर्धो में विभक्त -हो गये ।

इन छः यज्ञों का क्रम और नाम इस प्रकार है : १. सन्ध्या , २. स्वाध्याय , ३. देवयज्ञ , ४. बलिवैश्वदेवयज्ञ , ५. अतिथियज्ञ , और ६. पितृयज्ञ | - ब्रह्मयज्ञ में ' ब्रह्म ' शब्द के कारण स्वाध्याय और सन्ध्या दोनों यज्ञ गृहीत है । महाभारत में ' ब्रह्म ' शब्द से परब्रह्म और शब्दब्रह्म दोनों ही गृहीत समझे गए हैं ; तद्यथा - द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये शब्द - ब्रह्म परञ्च यत् । शब्दब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ शब्दब्रह्म ( वेद ) का चिन्तन स्वाध्याय है और परब्रह्म का चिन्तन सन्ध्या है । इन पंक्तियों में स्वाध्याय यज्ञ पर कुछ न कहकर शेष पञ्चमहायज्ञों की महत्ता के बारे में कुछ कहेंगे ।

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DHAI MORCHE KA CHAKRAVYOOH

'अंकुर आर्य'आर्ष गुरुकुलीय प्रणाली में निष्णात विशारद व आचार्य हैं जिन्होने दर्शन, उपनिषद्, स्मृति, नीति, श्रीगीताजी, रामायण व महाभारत का अध्ययन कर विश्वभर में वैदिक ग्रंथों का प्रचार प्रसार किया। उन्होने 2013 में सरकारी नौकरी का लालच छोड गृह त्याग कर सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया व योग, अध्यात्म तथा गुरुकुलीय शिक्षा हेतु महर्षि दयानंद सरस्वती जी के सम्बोधन "वेदों की ओर लौटो" का संदेश लोगों तक पहुंचाया। गुरुकुलीय शिक्षा के बाद उन्होंने इस्लाम, इसाईयत का सनातन ग्रंथों से तुलनात्मक अध्ययन किया तथा हिन्दुओं के विरुद्ध चल रहे 'कन्वर्ज़न सिंडिकेट' को तोडने के लिए सीधे शास्त्रार्थ का बिगुल‌ फूंका तथा स्वामी श्रद्धानंद जी के शुद्धि आंदोलन को आगे बढाने हेतु अपनी आहुति देना आरम्भ किया।
जाकिर नाइक द्वारा वेद, उपनिषद्, गीताजी व रामायण पर लगाए सभी आक्षेपों का एक ही बार में निरुत्तर करने वाला जवाब देकर उन्होंने मनुस्मृति का अध्यापन किया जिसके द्वारा मनुस्मृति के विषय में फैलाई जा रही सभी भ्रांतियों का निवारण किया।
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिमों द्वारा 'सोफिया कॉलेज ब्लैकमेल कांड' पर पहली बार लोगों को पुनः जागृत करने के कारण राजस्थान सरकार द्वारा सन् 2020 में अभियोग भी चलाया गया। लेकिन उनका यह कार्य निरंतर जारी है।
तुलनात्मक अध्ययनव भ्रांति निवारण के इसी युद्ध में उनकी पहली कृति "ढाई मोर्चे का चक्रव्यूह" आपके हाथों में है जो देश के भीतर छिपे देश के दुश्मनों को पहचानने में सबसे बडा अस्त्र सिद्ध होगी

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